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देश मे सभी कर रहे है | Best Thriller Love Story Hindi | प्यार और वो | Part 6

देश मे सभी कर रहे है,Best Thriller Love Story Hindi,प्यार और वो,Part 6

देश मे सभी कर रहे है | Best Thriller Love Story Hindi | प्यार और वो | Part 6 : 


अध्याय-8

देहरादून का रेलवे स्टेशन, सुबह सात बजकर बीस मिनट

अमर पहले से ही पहुँचा हुआ था। वो हँस रहा था। हो भी क्यो ना हमारी लॉटरी निकल गई थी। केवल कैम्पस मे ही दोनो को ट्रेनिग के लिए बुलाया था। वरना आपलाई तो ना जाने कितनो ने किया था। ये सब अमर की ही महिमा थी। उसके मामा विधायक थे और साथ मे कंपनी के मैनेजर के जानकर भी। वैसे सच कहूँ तो दोनो ही कंपनी के काबिल नही थे। हम तो ये भी नही जानते थे कि लैब मे कैसे काम होता है पर इस से क्या ? 

देश मे सभी ऐसा कर रहे है और आगे भी करते रहेगे चाहे सरकार किसी की भी हो। ठीक वक्त पे ट्रेन भी चल पड़ी। हमारे भविष्य के सफर की ओर... 

11 बजकर 30 मिनट हरिद्वार रेलने स्टेशन, 
 
वहाँ तो इतनी भीड़ थी कि साँस लेने मे भी  दिक्कत हो रही थी। हो भी क्यो ना, देश का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल जो है। यही पे तो माँ गंगा के दर्शन होते है। अमर मेरी ओर देखते हुए बोला, भाई जब यहाँ आ ही गए तो क्यो ना गंगा मे स्नान कर लिया जाए। वैसे तो हमे दो बजे तक पहुँचना है।
भाई जब तुम्हे पता था कि दो बजे तक पहुँचना है फिर इतनी जल्दी यहाँ क्यो आ गए। 
भाई घूमने के लिए, वो तो मैं जानता ही था उसे तो केवल घुमने का शौक है। वो तो हर बार कहता है कि बस दस से बारह साल नौकरी करने के बाद ब्रिटेन चले जाना और उसके बाद पूरी दूनिया को घूमना है। उसकी एक बात मुझे अच्छी लगती है वो हर बार कहता था। ईश्वर ने हमे यहाँ सिर्फ इस लिए भेजा है ताकि हम जितना हो सके उतनी खुशिया बटोर ले और हर पल को जी ले। चाहे वो प्यार के हो या गम के.. 

क्योकि आज नही तो कल हमे यहाँ से जाना ही है फिर क्यो परेशान होना कि हम यहाँ क्यो आए और किसके लिए आए बस हमे तो ये याद रखना है। हम तो सिर्फ प्यार करने और उसको लुटाने के लिए आए है। 
वो एक बात हमेशा कहता था जब तक जिंदा है तब तक जी भर के जी लेगें और जब मर जाऐगे तो दो गज जमीन के नीचे गहरी नीद मे सो लेगे और फिर से इस मिट्टी मे मिल जाऐगे। जब हमने जाना ही कही नही फिर चिंता किस की.....

भाई तुम्हे नहना हो तो नहा लो पर मुझे तो अब भी बुखार है। 
ड्रामे ना करो थोड़ा सा नहा लो.. जब यहाँ सारे पाप धूल जाते है तो तुम्हारा रोग क्या है। 

ठीक है तुम मानोगे तो नही.... तो चलते है। 
गंगा घाट मे अगर आप गए हो तो पता ही होगा। पानी का उफान इतना होता है कि देखते ही चक्कर आ जाए। अगर गलती से बीच मे पहुँच गए तो मुक्ति तय है पर डरने वाली कोई बात नही। नहाने के लिए किनारे पे जंजीरे लगाई गई है। वही पर ही सभी नहाते है। हम भी नहाने लगे अब आप सोच रहे होगे हमे इतना जानने की जरूरत क्या है पर दोस्तो आपको पहले ही बताया था।

हम कुछ नही करते हमे से करवाया जाता है। चाहे हम ये भ्रम पाले की हर काम ओर उसका परिणाम हमारे साथ है पर ऐसा कुछ नही। सबकुछ तय है। हमे तो वो चला रहा है बस आगे बढ़ना ही हमारा काम है। ना बिता वक्त हमारे हाथ मे है और ना ही भविष्य का कुछ कर सकते है और वर्तमान तो कुछ है ही नही। 

बस हमारी जिंदगी तो बिते वक्त की यादो की अनकही कहानी है जिसको हम भविष्य मे जीते है। बस फर्क इतना है आने वाला भविष्य हर कदम पर तैयार बैठा रहता है। अब ऐसा ही इतेफाक हमारे साथ होने वाला था। सही मे नहाने के बाद तो शरीर पंख की तरह हल्का हो गया। पता नही क्या हुआ। दिमाग बिलकुल शांत हो गया। जैसे बीच समुद्र मे हूँ और दूर तक कोई भी नही। 

नहाने के बाद भूख बढ़ गई तो खाने के लिए होटल ढूढ़ने लगे। थोड़ी देर मार्किट घूमने पर एक रेस्टोरेट भी दिख गया। भीतर गए तो वो इतना बढ़ा तो ना था फिर भी ठीक था। वैसे भी भूख मिठ्ठी होती है ना कि भोजन। 

दो प्लेट छोले भठूरो के साथ लस्सी भी मँगा ली। कानो मे एक मिठ्ठी सी आवाज गुँजी। 
आगे पीछे देखा पर कोई ना थी। लगा श्याद मन का वहम है। फिर तो गर्म गर्म छोले भठूरे खाने का मजा लेने लगे। पीछे के टेबल से पायल की छनछन हो रही थी। पीछे कोई घ्यान नही दिया। बस खाने मे पूरा घ्यान था। खाना खत्म कर कैशियर के पास गए तो हल्का सा धक्का लगा। अपने आप ही मुंह से सॉरी बोल पड़ा। 

पीछे मुड़ के देखा तो दिल को जोरदार झटका लगा। सामने गुलाबी सूट डाले पलको की भोहो पर काला काजल लगाए... गुलाबी लबो पे हल्की मुस्कान लिए कविता खड़ी थी। काले लंबे बाल बार बार पंखे की हवा से उसके चेहरे पे आ रहे थे। जिन्हे बार बार अपने कानो के पीछे कर रही थी। थोड़ा-सा ओर पास आकर उसने पूछा... कैसे हो। 

कोई जवाब नही, ना ही आस पास की कोई खबर थी। 
मैने पूछा कैसे हो। खुद को संभालते हुए और उसके लबो की हँसी को देखते हुए बोला, ठीक हूँ और आप। 
अमर दोनो को ऐसे घूर रहा था जैसे कोई एलियन देख लिया हो। 
आप यहाँ कैसे, काँच के दरवाजे से बाहर की भीड़ को देखने लगा। जो बेतरबी से भागे जा रही थी। बस फैशन डिजाइनर की ट्रेनिग के लिए आई हूँ। साथ मे दो फ्रेंड भी है।

यही पीछे पीजी मे रहते है पर तुम बतोओ यहाँ कैसे। ना जाने हमे मिले कितना लंबा वक्त हो गया। तुम तो फेवरल पार्टी मे भी नही आए पर तुमने वादा किया था कि जरूर आओगे। उसके बाद ना फौन किया ओर ना ही मिले। कई बार तुम्हारा नंबर भी ट्राई किया पर हर बार स्विच आफ आता था। ओर आज यहाँ मिल गए। 

बस क्या कहूँ, कुछ समझ ही नही आया। फेवरल पार्टी के लिए तो आना ही था कई दिनो से तैयारी भी की थी पर फेवरल पार्टी से एक रात पहले ही माता जी बिमार पड़ गई। आधी रात को ही अस्पताल ले जाना पड़ा। चार दिन तक वो वही पड़ी रही। उसके बाद भी घर पे मुझे ही उनका ख्याल रखना पड़ा। वैसे मैं भी यहाँ ट्रेनिग के लिए आया हूँ। ये तो बढ़िया है वैसे रहोगे कहाँ, हाथो के कंगन को घूमाने लगी।

दोनो साथ ही बाहर आ गए। फिर भी उसकी परफ्यूम की खूशबू हवा के साथ साँसो मे घूल रही थी। 
कब तक रहोगे.. 
वो तो सैलेक्ट होने पे ही पता चलेगा। देखते है वहाँ क्या जवाब मिलता है। सबकुछ अच्छा ही होगा। श्याद तुम तो भूल गए होगे पर मुझे आज भी याद है वो शाम, मै तो मर ही जाती अगर तुम ना आते। उसके चेहरे पे चिंता की लकीरे उभर आई। 

इस मे बड़ी बात क्या है। अगर मैं ना होता तो तुम्हे कोई ओर बचा लेता। 
फिर भी केवल तुम ही ऐसा कर सकते थे। कुछ देर के लिए सारा लम्हा उदास  हो गया। 
अमर ने कंधे पे हाथ रखते हुए मुझे जगाया। चलो भाई चलते है। कही पहले दिन ही लेट ना हो जाए। कविता ने अपना मोबाइल नंबर कागज पे लिखा और देते हुए बोली....शाम को पक्का बताना रिजल्ट का क्या रहा। गायब मत हो जाना पहले की तरह। 

ओटो रिक्शा लिया और कंपनी की ओर चल दिए। 
भाई वो बात क्या है जो वो कह रही थी, बाहर की ओर देखते हुए अमर बोला। वो बाद मे बताऊँगा। पहले जिस काम के लिए आए है वो तो कर ले।
तय समय से बीस मिनट पहले ही कंपनी पहुँच गए। भीतर से देखते ही लगता था। यहाँ सैलेक्ट होना आसान नही... 
दो घंटे तक हमारा सारा इतिहास जाना गया। बस घर की रजिस्टरी के कागज कहाँ रखे है और ए.टी.एम का पासवर्ड क्या है? ये नही पूछा।
बाहर आधे घंटे इंतजार करने को कहा...
बाद मे एच.आर ने रूम मे बुलाकर कहा, सॉरी अगली बार दूबारा से कोशिश करना। दोनो के चेहरे पतझड़ के पेड़ो की तरह सूखने लगे। धीमे से खड़े हुए ओर कंपनी से बाहर आ गए। कंपनी के गेट के पास खड़े होकर, सड़क पे जाती बसो को देख रहे थे। पीछे से किसी ने आवाज मारी, बहकी नजरो से पीछे देखा तो फिर से कविता खड़ी थी। 
पास आकर पूछा क्या हुआ। 

कोई बात नही...
कुछ देर बात की फिर वो चली गई। भाई अब करना क्या है। चेहरे की उदासी को छुपते हुए अमर ने पूछा।
करना क्या है? 
लौट चलो। अपने इतिहास की ओर.... पता नही यहाँ क्यो आए। सभी कैम्पस मे हमारा मजाक उड़ाएगे। ओटो लेके बस स्टैंड पहुँच गए। देहरादून की बस को आने मे बीस मिनट रह गए थे। पहले तो दोनो काफी खुश थे पर अब तो बैंच के ऊपर बैठकर बस मे सवारियो को चढ़ते उतरते देख रहे थे। 

आधा घंटा बित गया पर बस नही आई। अमर पूछताछ काऊटर मे जाकर पता करने लगा। पीछे ही कुलचे वाला बैठा था तो उसे दो प्लेट बनाने को कहा। पास आकर अमर ने कहा, वो बस दिल्ली से आ रही थी तो रास्ते मे ही खराब हो गई। दूसरी बस रात की है। तो इतनी देर क्या करे, करना क्या है।यूँ ही बैठे रहो ओर कुल्चे खाते रहो। अमर के मोबाईल की रिरग बजी, वो खड़ा हुआ ओर साइड मे जाकर बात करने लगा। दस मिनट बाद वापिस आया। 
कहाँ से था। 
हेड-क्वार्टर (घर) से, पूछ रहे थे क्या बना तो बता दिया कुछ नही। 
फिर क्या कहा। 
कहना क्या था। बस यही कि घर आओगे तो तुम्हारे स्वागत मे कोई कसर नही छोड़ेगें। 
दोनो हँसने लगे। 
फिर से मोबाईल की रिंग बजी। अब वो मेरी थी। 
लगता है हेड आफिस मे तुम्हे भी रिर्पोट करनी होगी। ऐसा तो नही है पर हो भी सकता है। नंबर देखा तो आन-नॉन था। 
हैलो... साहिल बोल रहे हो। 
जी हाँ, हम टैस्टीग कपनी से बोल रहे है। तुम्हारा एक टैस्ट छूट गया। आ जाओ।

कुछ कहने से पहले ही फोन कट गया। भाई कहाँ से था। वही से ही जहाँ से मैं कह रहा था ना तभी तो चेहरा लटक गया।
अरे नही कंपनी से था। क्या कह रहे है। बस कुछ नही एक ओर टैस्ट के लिए बुला रहे है। 
क्यो अब पूलिस वैरिफीकेशन भी करनी है क्या ? 
भाई वो तो मैं नही जानता। क्या कहते हो। तुम बताओ मन तो नही है वैसे भी क्या करेगें वहाँ जाकर। 
कह तो तुम ठीक रहे हो पर जाने मे क्या हर्ज है। यहाँ बैठकर भी करेगे क्या? बस तो शाम की है। चलो चलते है। 

वैसे मन तो नही पर तुम कहतो हो तो चलो। फिर से पहुँच गए कंपनी। 
पर अब पहले की तरह खुश नही थे। एच. आर ने सीधा, प्रोडक्शन हेड के पास भेज दिया। दरवाजे को धीरे से खोला और भीतर चले गए। आँखो मे चश्मा, गले मे लाल टाई पहने, पतले से एक शख्स मिले। जो कुछ ढूढ़ रहे थे। फाइल को उठाते हुए बोले, 
साहिल कौन है? 
जी मै,
कविता को कैसे जानते हो। ये बात सुनते ही शरीर मे कंपकंपी होने लगी। 
धीमे से बोला, जी हम एक साथ ही पढ़ते थे। 
ठीक है बैठ जाओ। 
ओर बताओ क्या लोगे। 
जी कुछ नही।
चलो ठंडा तो पी लो। दिमाग मे अब भी कई सवाल चल रहे थे। 
कविता मेरी भतीजी है उसने ही बताया दोपहर को तुम आए थे और सैलेक्ट नही हुए। बच्चे ये हमारा देश है। यहाँ बिना सिफारिश के कुछ नही होता। 
दोनो ने हाँ मे सिर हिलाया और एक दूसरे को देखने लगे। वो तो हम जानते ही थे। तुम चिंता ना करो। सिर्फ कविता के कहने पर ऐसा कर रहा हूँ। बस एक पेपर देना है। तुम पहले ही सैलेक्ट हो चुके हो। दोनो की फाईल ऊपर पहुँच गई है। टेबल से चाबी और मोबाईल उठाकर बाहर चले गए। दोनो चिल्लाना तो चहाते थे पर चुप रहे। टैस्ट हुआ। थोड़ी देर मे ही वही एच.आर जिसने हमे मना किया था अब वो ही हमे ज्वानिग लेटर देने आई। ट्रेनिग आठ महीने की थी। साथ मे रहने के लिए रूम भी दे दिया। 

कब आपकी किस्मत और वक्त पलट जाए कुछ कह नही सकते। सैलेक्ट होने की खुशी मे निकल पड़े पार्टी के लिए। 
कविता को थैंक्स कहने के लिए फौन किया पर उसका नंबर बंद था। पता नही कितनी बियर की बोटले खाली कर दी। पार्क मे नीचे ही हरी घास के ऊपर लेट गए। तारे कुछ ज्यादा ही चमक रहे थे। बर्फ सी मचलती हवा, शरीर को छूने लगी तो आँखो में नीद आने लगी। 
अमर ने बहकती आवाज मे पूछा, यार वो देवी कौन थी। जिसने नामुमकिन को भी मुमकिन बना दिया। 

हाँ, मैं भी यही सोच रहा हूँ। अब लगता है ये केवल सपना है। 
ऐसा तो मुझे भी लग रहा है पर है तो हकीकत। वैसे ये बताओ उस से तुम्हारी मुलाकत कैसे हूई। 
दिल्ली मे जब ग्रेजुएशन के दूसरे साल मे था। हमारी मुलाकत भी एक इतेफाक  थी। सर्दियो की ठंडी रात और ऊपर से बरसात हो रही थी। तुम तो जानते ही हो दिल्ली की ठंडी राते कैसे होती है। आठ या साढ़े आठ का वक्त रहा होगा। लाल किले के दूसरी तरफ बने बस स्टॉप पे खड़ा होकर बस का इंतजार कर  रहा था। 

लग रहा था पूरा शहर कही दूर चल गया और मुझे छोड़ गया। खड़े हुए घंटे से ऊपर का वक्त बीत गया पर कुछ ना मिला। बरसात भी बढ़ने लगी। सोच रहा था क्यो घर से बाहर निकला। ना निकलता तो घर पर बोर्डर बन जाता। शाम को पिताजी के साथ बहस बाजी हो गई। भाई भी उनका ही साथ दे रहा था। ऐसा भी क्या हुआ जो तुम्हे देश निकाला दे दिया। 

वो तो रोज का ड्रामा था पर उस दिन कुछ ज्यादा ही हो गया। बात ज्यादा नही थी बस गुलाबजामुन के सात पीस खा गया। मुझे क्या पता था वो पिताजी के दोस्त के थे। फिर क्या था पिताजी ने बैट उठा लिया और भैया ने दरवाजे बंद कर दिया पर वो एक भूल कर गए। 
खिड़की खुली छोड़ दी। घायल हिरन को क्या चाहिए सिर्फ एक मौका....
पिताजी दो कदम आगे बढ़े और तब तक मैं गली मे था। ये कैसे हुआ। ये तो मुझे भी नही पता बस इतना समझ लो जब खुंखार कुत्ता काटने को दौड़ता है। तो हम उस से तेज ही दैड़ते है चाहे बाद मे वो तीन से चार बार काटे।
मैं हँस रहा था पर कहाँ जानता था। पिताजी फौज मे है पता नही कब वो बाहर आए औऱ एक मुक्का पीठ पे पड़ा तो लगा मुझ पे बिजली गिर गई। तीन चार ओर भी पड़ते पर दौड़कर अपनी जान बचाई। 

मोबाईल मे टाइम देखा तो साढ़े नौ बज गए थे। अब बस का इंतजार करना बेकार था। आसमां की तरफ देखते हुए गर्दन घुमाई तो कोई दौड़ते हुआ आ रहा था। जब कुछ मीटर की दूरी रह गई तो सामने सफेद सूट पहने, चुन्नी से सिर ढ़के छोटी हाईट की लड़की बस स्टॉप की ओर ही आ रही थी। 


एक झलक मेरी ओर देखा फिर आगे देखने लगी। काले लंबे बालो ने उसका आधा चेहरा छुपा रखा था। फिर भी काली आँखे चमक रही थी। बस स्टॉप के साथ ही पीली रोशनी का लैम्प लगा था उस से ही थोड़ी बहुत रोशनी भीतर आ रही थी बाकि तो सारा लम्हा अंधेरे मे डूबा हुआ था। 

हल्की पीली रोशनी मे उसके बाल चमक रहे थे। दोनो एक दूसरे को तिरछी नजरो से देख रहे थे पर कुछ कहा नही... 
बरसात भी कम होने लगी औऱ कुछ देर के बाद...
लाल रंग की स्कोडा कार सामने रूकी वो धीमे से उस ओर बड़ी.. बैठने से पहले एक बार मुझे देखा ओर बैठ गई। कार तो पानी के छीटे उड़ते हुए चली गई और फिर से रह गया मैं अकेला.. 
दस मिनट बाद घर जाने के लिए ओटो रिक्शा भी मिल गया। 
कुछ समझ नही आया। इस से क्या? 

भाई पहले मुझे भी ऐसा ही लगा पर बाद मे पता चला ये उसकी सोची समझी चाल थी। 
वो छोड़ो ये बताओ कविता के साथ तुम्हारी जान पहचान कैसे हुई। 
आगे सुनो, हफ्ते के बाद क्लास मे बैठा था और मैथ का पेपर चल रहा था। बड़ा मुश्किल आया था। सभी के चेहरे बता रहे थे किसे कितना आता है। उस दिन बड़ी खतरनाक मैम की डूयटी लगी थी जो गर्दन घुमने पर ही बाहर का रास्ता दिखा देती। बीस मिनट के भीतर ही सात लड़के बाहर जा चुके थे। 

अब तो सभी चुपचाप पेपर कर रहे थे। पीछे से किसकी सिसकियाँ सुनाई दी। आगे देखते हुए पीछे गर्दन घुमाई। अंसर सीट के ऊपर सिर झुकाकर लड़की रो रही थी। भाई तुम तो जानते ही हो दोनो आज तक यहाँ पर्ची के दम से ही पहुँचे है। इतना तो कर ही लिया था की पास हो जाऊ। बैठकर टाइम पास कर रहा था। पता नही मुझे क्या हुआ। 
सामने मैम को देखा वो खिड़की के पास खड़ी होकर मोबाईल पे बात कर रही थी उसका ध्यान बाहर था। 

बस मौका देखकर पीछे मुड़ा ओर उसकी शीट सेकर अपनी थमा दी वो बोलना तो चाहती थी पर हाथ से इशारा कर चुप करा दिया।  उसने कुछ भी नही लिखा था फिर से पेपर करना शुरू कर दिया। अब हाथ तेज चल रहे थे। पेपर खत्म होने से दस मिनट पहले ही दूबारा मौक देखकर सीट बदली और अपनी शीट लेकर मैम के पास पहुँच गया। वो हमारा आखिरी पेपर था। दो महीने तक कॉलेज बंद हो गए। 

महीने बाद रिजल्ट आ गया। दूबारा से पास हो गया फिर उसी स्टॉप पे बस का इंतजार कर रहा था। जहाँ बरसात वाली रात को खड़ा था पर आज तो बढ़िया धूप खिली थी। उसी पल लगा साथ मे कोई खड़ा हुआ है। उस ओर देखा तो गुलाबी सूट के साथ हाथो मे लाल चूड़िया पहने खूबसूरत लड़की खड़ी थी। उसने हाथ आगे किया ना चाहते हुए भी हाथ मिलाया।
दो मिनट बाद उसने बताया कि सिर्फ मेरे कारण ही उसके पहली बार मैथ मे सबसे ज्यादा नंबर आए। नही तो वो हर बार फेल हो जाती और साथ मे उसने ये भी बताया। बरसात की रात वही सफेद सूट पहने थी। बाद मे दोनो की  अच्छी दोस्ती हो गई। वही कविता थी। उसके पिताजी आर्मी मे कर्नल थे। पहले वो रानीखेत रहती थी। उसने सीधा सैकिण्ड ईयर मे उसने एडमिशन लिया था।   ना ही उसे पढ़ने शौक था और ना ही मुझे। दोनो क्लास बंक कर मूवी देखने को जाते।
एक दोपहर पार्क मे बैठकर आईस्क्रीम खा रहे थे पता नही क्या हुआ मैने अपनी बायीं ओर देखा, भाई साहब अपने दोस्त के साथ उसी ओर आ रहे थे बड़ी मुश्किल से उन से बचा वरना मेरी भी चाय का दूकान खुल जाती। 

अच्छा तो इस तरह मुलाकत हुई पर वो क्या बात थी।जिसके लिए तुम्हे वो बार बार शक्रिया कर रही थी। वो कह रही थी उस दिन तुम ना होते तो कुछ भी हो सकता था। 

बस एक दिन घूमने के लिए शिमला जा रहे थे और रास्ते मे......
मेरे फौन की रिंग बजी..... 
हैलो, जी आ रहे है। घड़ी मे टाइम देखा तो साढ़े दस बज चुके थे। चलो भाई चलते है आज नाईट स्फिट करनी है। 
पर वो शिमला की घटना....
फिर किसी ओर दिन बताऊँगा। 

पाँच महीने कैसे बिते कुछ पता ना चला। दो हफ्ते के लिए कंपनी ने छूट्टी दे दी। अमर घर जाना चाहता था तो अगली सुबह उसे छोड़ने बस अड्डे चला गया। बस को आने मे आधा घंटा बाकि था। दो दूकानो के बाद कॉफी कॉनर दिखा तो भीतर चले गए। सभी टेबलो पे केवल कपल बैठे थे। बस हम ही दो  लड़के थे। थोड़ा सिर घूमने के बाद पीली रोशनी के नीचे एक टेबल के साथ दो कुर्सी मिल गई। कॉफी के दो कप आर्डर किए। 

कंपनी मे बिताए वक्त की बाते करने लगे। भाई, कविता को तो फौन कर लो।  उसके कारण ही आज हमारा भविष्य सुरक्षित लग रहा है। 
ठीक है करता हूँ। रिंग जा रही है। 
हैलो कविता....  
कविता तो काम से बाहर गई है। ठीक है उसे बता देना साहिल का फौन आया था। 

यार वो बात तो बताओ। उस दिन शिमला मे क्या हुआ।  
उस दिन भी ऐसा ही मौसम ही था पर हाँ, ठड़ी हवा चल रही थी। तुम तो जानते ही हो शिमला के मौसम के बारे मे... मैं भी पहली बार शिमला आया था वो भी उसकी जिद के कारण। 

कॉलेज तीन दिन के ट्रिप के लिए गोवा गया था पर दोनो शिमला आ गए। शिमला पहुँचे तो पता लगा यहाँ उसके मामा का घर है पर वो बैंगलोर मे रहते थे। चाबी कविता के पास ही रहती थी। स्कूल के दिनो मे भी वो सहलियो के साथ शिमला आती रहती थी। कमरे के भीतर गए तो खिड़कियो पर बड़े-बड़े फूलदार पर्दे और दिवारो पे बहते नीले पानी के साथ उड़ते हूए बादल बने थे। खिड़की से बाहर झाँका कर देखा तो बर्फ सी ठंडी हवा होठो को सुखाने लगी। उसी पल गर्म-गर्म कॉफी के साथ पनीर के पकोड़े ले आई। आधे घंटे के बाद ही वो जिद करने लगी कि इसे कुफरी जाना है। 

टैक्सी बुक की ओर पहुँच गए कुफरी पर यहाँ के हालत तो शिमला से 
भी खराब थे। बारीश शुरू हो गई। वहाँ कोई नही था। बस हम दोनो थे और उसी पल.... 

अमर जल्दी उठो तुम्हारी बस जाने वाली है। दोनो तेजी से उसी ओर दोड़े, भागते हुए उसने बस पकड़ी। वो तो चला गया पर मैं सोचने लगा.. कहाँ जाऊँ घर जाने के बारे मे  सोचना बेकार था। कौन दूबारा से कैद होना चाहेगा। 

घर मे तो एक दिन भी सालो जैसा बीतता था पर आज वही कैद जन्नत जैसी लगती है पर मिलती ही नही। श्याद हमे किसी की कद्र तभी होती है जब वो छूट जाती है।  रिटायरमेट होते ही पिताजी के साथ माँ तीर्थ यात्रा के लिए निकली फिर पता नही कहाँ खो गए। 

ना जाने उनकी तलाश मे हमने कितनी बार तीर्थ यात्रा कर ली। उनका कोई पता ना चला। कई बार उनके बारे मे खबर भी आई जब वहाँ पहुचे तो केवल एक आफवाह थी। कितने ही बाबाओ और तांत्रिको से जादू टोना भी करा के देखा पर सब बेकार। उसके चक्कर मे बड़े भाई साहब की नौकरी जाने वाली थी। उसके बाद तो घर कब्रगाह बन गया। बाद मे हमने उसे बैच दिया। भाई  तो चण्डीगढ़ आ गए और मैं देहरादून आ चला गया। 

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